भाग्यं फलति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषम्।
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भाग्यं फलति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषम्। हरी हस्ते गते लक्ष्मी हर कण्ठे गतम विषम्।।
यह श्लोक कहता है कि "भाग्य ही सब जगह फलित होता है, न तो विद्या और न ही पौरुष"। इसका मतलब है कि भाग्य सबसे महत्वपूर्ण है, और विद्या या पुरुषार्थ का महत्व भाग्य के सामने कम है। समुद्र मंथन के उदाहरण से इसे स्पष्ट किया गया है, जहाँ प्रभु विष्णु को लक्ष्मी मिलीं और प्रभु शंकर को विष। यह भाग्य का खेल था, जहाँ हर किसी को उनकी नियति के अनुसार फल मिला।
नमस्कार! मैं आचार्य नरेश भाग्यफलम.कॉम (bhagyafalam.com) पर आप सबका हार्दिक स्वागत करता हूँ। ज्योतिष की इस पावन भूमि पर मेरा उद्देश्य केवल भविष्य बताना नहीं, बल्कि आपके जीवन को सही दिशा देना और आपकी हर समस्या का वैदिक ज्योतिष के माध्यम से समाधान खोजना है।
मैंने अपना जीवन वैदिक ज्योतिष के गहन अध्ययन और अनुसंधान को समर्पित किया है। मेरा मानना है कि ज्योतिष केवल ग्रहों की चाल का अध्ययन नहीं है, बल्कि यह एक दिव्य विज्ञान है जो हमें हमारे कर्मों, प्रारब्ध और भविष्य की संभावनाओं को समझने में मदद करता है। यह हमें सही समय पर सही निर्णय लेने की शक्ति देता है और जीवन के हर मोड़ पर हमारा मार्गदर्शन करता है।
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सादर,
आचार्य नरेश
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